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… कसमें… वादे … प्यार… वफा !
कसमें… वादे … प्यार… वफा! क्या इन्हीं तक सिमटकर रह जाएगी मोदी सरकार। सोच से ज्यादा वोट हासिल करने वाली मोदी सरकार की प्राथमिकता में ख्वाबों की परिभाषा रचने के सिवाए कुछ और “सोच” बेबुनियाद नजर आने लगी है। लेकिन लोग कहते है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। इसी उम्मीद के बूते तो मोदी सरकार को वोट दिया था जनता जर्नादन ने। कभी शॉल तो कभी साड़ी की शालीन राजनीति को टिवट्र के जरिए परवान चढ़ा रहे देश के प्रधानमंत्री ने अभी तक अपनी जुबान से उन सैनिकों के लिए कुछ नहीं बोला, जो पाकिस्तान की “मुंह में राम-बगल में छुरी” वाले प्रहारों का शिकार हुए। शहीदों की विधवाओं के आंसूओं को अपना ढाल बनाकर जीत हासिल करने वाली मोदी सरकार पर कांग्रेस सहित कुछ “आप” के ठेकेदारों ने तंज भी कसा है, लेकिन यह तंज महज अखबारों की चंद सुर्खियों बनने के अलावा कुछ और नहीं बन सका।
खैर! एक और उम्मीद तो कर ही सकते है कि फेसबुकिया छोकरे-छोकरियां अब सरकार को उन बिन्दुओं पर काम करने के लिए प्रेरित करेंगे, जिससे देश की सरहद पर तैनात सुरक्षाकर्मियों के घावों पर मरहम लग सकेगा। हालांकि जुम्मा-जुम्मा अभी आए हुए दिन भी कितने हुए है मोदी सरकार को, ऐसा भी कुछ लोग कह रहे है। पर हिन्दूस्तान में एक बात और भी सुनी है हमनें, वो कि “पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है।”
खैर देखते है.. कसमें…वादे…प्यार… वफा आगे क्या रंग लाती है ?
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